प्यारे साथियों,
सभी को राम-राम !!
आशा करता हूँ कि आप स्वस्थ और सकुशल हैं। जैसा कि हम सभी आज एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। 11 मार्च 2020 को कोरोनावायरस या कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था। इस वैश्विक महामारी ने विकराल रूप लेकर लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। चीन को गाली देना तो लाज़मी है पर इसमें अप्रत्यक्ष रूप से हम सबका भी योगदान है। दुनिया भर के वो तमाम राजनेता जिन्हें हम अपना प्रतिनिधि बनाते हैं, ये उनकी ज़िम्मेदारी है कि ऐसी किसी भी परिस्थिति को पहले तो पनपने ही ना दें और अगर कहीं भूल-चूक हो गई हो, तो उसे तुरंत रोकें और उससे सबक़ सीखें। कोरोना से पहले इबोला नामक एक बीमारी ने भी ऐसे ही पाँव पसारे थे। ऐसा माना जाता है कि वो भी चमगादड़ की ही देन थी। माफ़ी चाहूँगा! बेचारे चमगादड़ को फ़ालतू ही क़ोस रहा हूँ। करे कोई भरे कोई!!
जब पूरी दुनिया के राजनेताओं और ठेकेदारों को इबोला की वज़ह मालुम पड़ गई थी, तो मेरा सवाल है कि उसके ख़िलाफ़ आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई गई। किसी के भी कानों में जूँ तक नहीं रेंगी। यदि समय रहते संयुक्त राष्ट्र और पूरी दुनिया के देश, चीन के बाज़ारों पर लगाम लगाते, तो शायद यह दिन ना देखना पड़ता। कभी इबोला, कभी कोरोना, कभी फ़लाना, कभी ढिमका, क्या यही तमाशा हमेशा चलता रहेगा। यह महामारी 100 प्रतिशत हमारी ग़लतियों और अंधेखियों की वजह से हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट किया है कि सबसे बुरा दौर अभी आना बाक़ी है।
हम मानवों ने प्रकृति के साथ बहुत छेड़छाड़ की है और धरती माँ को कई बार शर्मसार किया है। वैसे तो हमारे ऊपर कई कलंक लगे हैं – जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों, पहाड़ों की दुर्दशा और ना जाने क्या-क्या। इस विकासवादी और विस्तारवादी सोच के साथ हम बहुत हद तक पथ भ्रमित हो गए हैं और प्रकृति से प्यार करना भूल गए हैं। अब तो रहीम के दोहे शायद किताबों से भी ओझल हो गए हैं जिसमें वो कहते हैं कि – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। प्रकृति ने इस संसार में जो भी संसाधन दिए हैं वो मात्र हमारे उपयोग के लिए है। जब तक हम संसाधनों का उपयोग कर रहे थे, तब तक तो ठीक था पर अंधेर तो तब हो गया, जब हमने अपनी मनमानी करके लोभ और लालच में ओछेपन की पराकाष्ठा पार कर दी।
हमने हमेशा क़ुदरत के साथ छेड़छाड़ किया और उसका ख़ामियाज़ा भी भुगता है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि पूरी दुनिया थम गई हो। यहाँ तक कि प्रथम विश्वयुध और द्वितीय विश्वयुध के समय भी ये दुनिया नहीं रुकी थी जब लाखों लोगों ने अपनी जान गँवाई थी। मग़र आज की लड़ाई उन विश्वयुद्धों से कई गुना बड़ी है।
जब भी इंसान प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है, उसका संतुलन बिगाड़ता है और सारी हदें पार कर देता है तो ऐसा होना कोई बड़ी बता नहीं है। प्रकृति ख़ुद को संतुलित करना बख़ूबी जानती है। क़ुदरत को सामंजस्य स्थापित करना भली भाँति आता है। इन हालत में संयमित, सतर्क और समझदार रहने की ज़रूरत है तभी हम स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे। देशभर में लाक्डाउन है और समय का सदुपयोग करने की ज़रूरत है। इस लाक्डाउन में यह समझना बहुत ज़रूरी है कि यह सख़्ती हमारी भलाई के लिए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को समझने और इससे बचने की बहुत सारी जानकरी साझा की है। इसके साथ ही कई कोर्स भी साझा किए हैं ताकि हम ना केवल इसके बारे में ज्ञान अर्जित कर सकें अपितु आपातकाल की इस घड़ी में आवश्यकता अनुसार, इसकी रोकथाम के लिए अपना योगदान भी दे सकें।
पर कई बार यह देखकर मन खिन्न भी हो जाता है कि कुछ अत्यधिक समझदार- मंदबुद्धि इसे अपनी तौहीन समझ रहे हैं। ये मूर्ख, बेवजह ना केवल लॉक्डाउन का उलंघन बल्कि असंवैधानिक गतिविधियाँ भी कर रहे हैं। यक़ीन मानिए, यदि आपको लगता है कि आप स्वतंत्र नहीं हैं, यदि अपको लगता है कि आप बोर हो रहे हैं या आपको नकारात्मकता के भाव आ रहे हों तो कुछ बातों पर विचार ज़रूर कीजिएगा-
1- विचार कीजिएगा और ख़ुशी मनाइएगा कि आप उस कठिन दौर में नहीं हैं, जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना जीवन जेल में निकाल दिया था।
2- विचार कीजिएगा और ख़ुशी मनाइएगा कि आप 1975 से 1977 तक के इमर्जेन्सी वाले हालत में नहीं हैं, जब लाखों लोगों को ज़बरन जेल में सड़ना पड़ा था।
हर परिस्थिति को कई नज़रिए से देखा जा सकता है। वैसे ही आपदा की इस परिस्थिति में ऊर्जा को सही दिशा दीजिए और सकारात्मक सोच की ज्वाला जगाइए-
खुशी मनाइए कि इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आपको ठहरने और कुछ साँस लेने का मौक़ा मिला। अपनों को समझने और समय देने का मौक़ा मिला। कुछ नया सीखने का मौक़ा मिला। आत्म-मंथन और आत्म-चिंतन का मौक़ा मिला। हर व्यक्ति के जीवन में कुछ अधूरे कार्य होते हैं, उन्हें करने का मौक़ा मिला, कुछ नई ज़िम्मेदारियों से रूबरू होने का मौक़ा मिला। मौक़ा मिला है उन अनदेखे और अछूते पहलू को समझने का कि कैसे घर की औरतें और दूसरे सदस्य अपने कार्यों का निर्वाहन करते हैं। समय है उसे समझने और उनके कार्यों की क़द्र करने का।
ख़ुशी मनाओ यार कि कम से कम आप अपने परिवार और अज़ीज़ों के साथ हैं, ख़ुशी मनाओ कि सोने के लिए गुलगुल गद्दे पर मख़मली चादर है और पंखे बराबर काम कर रहे हैं, ख़ुशी मनाओ कि लज़ीज़ भोजन का लुत्फ़ उठा रहे हो, ख़ुशी मनाओ कि फ़ेस्बुक, इंस्टाग्राम, यूटूब, टिकटॉक का लुत्फ़ उठा पा रहे हो, आधिकांशतः हर वो चीज़ आपके पास है जिससे आपको ख़ुशी मिलती है। इस हालात में ये समझना बहुत ज़रूरी है कि –
” जो प्राप्त है वो पर्याप्त है “
कोई ना यारों, माना कुछ ज़रूरी काम छूट गए होंगे, कुछ नुक़सान हो रहा होगा, छोड़ दे यारा।। जब सारी दुनिया रुकी है, तो थोड़ा आप भी रुक जाओ और लुत्फ़ उठाओ इस दौर का, क्यूँकि कोरोना भी कहता है कि मैं बार-बार नहीं आता। आया हूँ आपको अपनों से जोड़ने, प्रकृति को सँवारने की सीख़ देने।
डरने की कोई बात नहीं है, मैं गर्व से कह सकता हूँ कि हम सवा सौ करोड़ का नेत्रत्व मज़बूत हाँथों में है।
आज पूरी दुनिया के हालत देखकर मन भयभीत होता है पर जब भारत का आँकड़ा देखता हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है। इस लड़ाई को यक़ीनन कई लोगों ने अलग अलग तरफ़ से संभाल रखा है पर बिना सही नेत्रत्व के इसे संभाल पाना असम्भव था। चाहे उसे प्रधान सेवक कहो या प्रधानमंत्री, बिना नमो के इस स्तर पर काम होना लगभग असम्भव था।
और ध्यान रखना-
अक़ाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, कोरोना भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।।
नीचे लिखी विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट की लिंक से आप भी ये कोर्स कर सकते हैं और कोरोना को हराने में मज़बूती से सहयोग कर सकते हैं –
अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें । घर में रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें । जय हो आपकी ।
धन्यवाद ।।
यूसुफ़ बोहरा भाई का ख़ास आभार – जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है वाली पंचलाइन के लिए।
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